अश्लीलता का समाजीकरण
होली हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से एक है । यह भारत के लगभग सभी प्रांतों में मनाया जाता है । रंग,राख,अबीर,कीचड़,पेंट आदि में सराबोर हो कर उत्तेजक और अश्लील गीतों के साथ प्रत्येक वर्ग के हिंदू स्त्री-पुरुष इस त्यौहार के जश्न में दिन भर डूबे रहते है । " वास्तव में यह उत्सव प्रेम करने से संबंधित है किन्तु शिष्टजनों कि नारियां बहार नहीं निकल पाती क्यों कि उन्हें इस बात का भय रहता है कि लोग भद्दी गलियां ना दे बैठें । " इस दिन छेड़छाड़,फब्तियाँ,अश्लील टिप्पड़ियां सब जायज़ माना जाता है । कुछ ऐसे सम्बन्ध है जैसे जीजा-साली , देवर-भाभी, नन्दोई-सहरज आदि के बीच हंसी ठिठोली और रंग गुलाल का प्रयोग तो सामाजिक हदे पार कर जाती है । उस दिन हिन्दू युवतियां अपने ही घर मे असुरक्षित महसूस करती है क्योंकि एक तो छेड़छाड़ का समाजीकरण दूसरे नशीले पदार्थों का खुल्मखुल्ला प्रयोग । होली के गीतों (फगुवा) में खुल्मखुल्ला भड़काऊ और अश्लील शब्दों का प्रयोग भी जायज माना जाता है । सबसे आश्चर्य कि बात तो यह है कि ऐसे गीत लोग जिस्मे अधिकांशतः बहुजन समाज के सदस्य ही होते है, अपने ही घरों,गलियों और मुहल्लों में गाते है जिसे सुन कर महिलाएं / युवतियां शर्मशार होते हुए भी कुछ नही कह पाती है और पुरुष नशे में धुत हो कर गाते-झूमते और कुछ भी बोलते रहते है । इस दिन हजारो लीटर शराब क्विंटल के क्विंटल मांस गटक जाते है । शराब और भंग पीना तो जैसे होली के लिए धर्म बन जाता है । प्रत्येक आयु वर्ग का पुरुष नशे में मतवाला बन जाता है । उस दिन मजाल है कि कोई सभ्य व्यक्ति क्या लड़की अकेले सड़क पर चल ले । इस प्रकार होली मांस-मदिरा से मदमस्त मनचले पुरुषों के मस्तिष्क में जब होली के अश्लील गीतों का हिलोरें उठता है तो किसी कमजोर पड़ोसिन अथवा संवेदनशील रिश्तों वाली युवतियों को अपने हवस का शिकार बना डालता है । यही है होली ?
होली के दिन सबसे ज्यादा दंगा-फसाद,मार-पीट छेड़खानी,राहजनी तथा बलात्कार कि घटनाए होती है। सम्मत जलाने का स्थल तो पुरानी रंजिश का हिशाब चुकाने का सबसे बेहतर मौका होता है । सभ्य जन भी छोटे-मोटे अप्रिय हरकतों और छेड़छाड़ को जायज मानते है आश्चर्य है कि फिर भी इस त्यौहार को सामाजिक सदभाव और प्रेम-भाईचारे का पर्व माना जाता है । इक्छा हो अथवा न हो अगर कोई अगर कोई चहरे में पेंट पोत रहा है तो चुप चाप ऐसा करने देना है वरना वो हो जाएगा जो नहीं होना चाहिए। प्रेम-भाईचारा का ऐसी मिसाल हिंदुस्तान के बाहर कहाँ मिलेगी ?
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